Sunday, January 21, 2018

आंतकवादी

आंतकवादी

मैं एक इन्सान हुँ या मैं एक फरमान हुँ।
मैं हुँ क्या।

हाँ मैं एक आंतकवादी हुँ
हाँ मैं एक आशावादी हुँ।
मैं एक जंजीर हुँ
मैं एक खींची लकीर हुँ।

मैं एक मुसलमान हुँ
पर मैं एक इन्सान हुँ।

मैं एक मजबूरी हुँ
अपनों से दूरी हूँ।

मैं एक असला हुँ
मैं बेशकला हुँ।
ना मैं खाकी, खादी हुँ
मैं तो आंतकवादी हुँ

मैं खुद मे ही आजादी हुँ
मैं खुद की ही बर्बादी हुँ।

मेरे घर मेरी बेटी छोटी है
मेरे घर में ना रोटी है।

बैगुनाह जब ऐसे मरते हैं
फिर इन्सान आंतकवादी बनते हैं।

सरकार भी तो दंगे करवाती है
आंतकवादी वो क्यों नहीं कहलाती हैं।

अब मेरा कोई सहारा नहीं

इस सागर का किनारा नहीं।

Vishal Kaushal


यह मेरी कविताओ की पहली किताब हैं। मैंने अपनी कविताओ के माध्यम से अपनी सोच को कागज पर ब्यान कर रहा हूँ। वक्त गुजरता गया चेहरा बदलता गया सोच बदलती गयी। नए लोग मिले, नए दोस्त बने पर कुछ लोग जिन्हें मैं आज भी याद करता हूँ और जिन्हें मैं आज भी याद हूँ।
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