Saturday, January 20, 2018

मिलेगा

मिलेगा

अब सहारो से मुझको क्या मिलेगा
नहीं मिले तो फिर भी चलेगा।
आदत सी हो गई हे कांटो की
कागज के ऊपर बनाने से फूल नहीं खिलेगा।
अब सहारो से मुझको क्या मिलेगा।
दौलत से कभी प्यार नहीं मिलेगा

अब मुझसा भी यार नहीं मिलेगा।
तोहफे ही तोहफे तेरे कदमों में अगर
जा तुझकों भी ऐसा गुलजार नहीं मिलेगा।


तेरे बुलाने पर यह शक्स मर कर भी जिन्दा मिलेगा
तेरी मोहब्बत की डाल पर यह परिंदा मिलेगा।
यकीन ना आऐ तो देख लेना अपने छोड़े हुए कदमों को
वहीं पर खड़ा तुझको तेरा इंतजार मिलेगा।


Vishal Kaushal


यह मेरी कविताओ की पहली किताब हैं। मैंने अपनी कविताओ के माध्यम से अपनी सोच को कागज पर ब्यान कर रहा हूँ। वक्त गुजरता गया चेहरा बदलता गया सोच बदलती गयी। नए लोग मिले, नए दोस्त बने पर कुछ लोग जिन्हें मैं आज भी याद करता हूँ और जिन्हें मैं आज भी याद हूँ।
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