पैमाना
जिन्दगी तो इतनी खास नहीं
मिटती क्यों यह प्यास नहीं ।
जाम तो है भरे भरे
मगर साकी क्यों पास नहीं ।
जिन्दगी तो इतनी खास नहीं ।
पैमाने से पैमाना टकराये
उसकी यादें क्यों ना आये।
शाम भी अब इतनी खास नहीं
अब बोतल जो मेरे पास नहीं ।
कदम जो आब लड़खड़ाने लगे
मयखाने से जब हम जाने लगे ।
फिर याद आया मुझे एक अफसाना
छोड़ आया भरा हुआ एक पैमाना ।
फिर भी अदाऐ दिखाने लगी
फिर उसकी याद आने लगी ।
क्यों कर बैठा यह दिल लगी
कब खत्म होगी यह तिश्नगीVishal kaushal
यह मेरी कविताओ की पहली किताब हैं। मैंने अपनी कविताओ के माध्यम से अपनी सोच को कागज पर ब्यान कर रहा हूँ। वक्त गुजरता गया चेहरा बदलता गया सोच बदलती गयी। नए लोग मिले, नए दोस्त बने पर कुछ लोग जिन्हें मैं आज भी याद करता हूँ और जिन्हें मैं आज भी याद हूँ।
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