Saturday, January 20, 2018

परछाईयो के भी चेहरे होते हैं

परछाईयो के भी चेहरे होते हैं ।
भूखे पेट भी इन्सान सोते हैं ।
हँसने वाले वो हँसते चेहरे ।
अक्सर तनहाँईयों में रोते हैं ।

परछाईयों के भी चेहरे होते हैं।
सुनकर मुझको यकीन कहाँ ।
अब मैं भी हूँ हैरान यहाँ ।
सीखा तेरी मोहब्बत से

के

हुसन वालों के भी पत्थर दिल होते हैं ।
परछाईयों के भी चेहरे होते हैं ।

दिल की दास्ता आहिस्ता सुनाना ।
वरना बन जाएगी यह अफसाना ।

फिर याद करना बुर्जुगों का जमाना ।

के

दिवारो के भी कान होते हैं ।
परछाईयों के भी चेहरे होते हैं ।
चाँद को देखकर सितारों का मुस्कुराना ।
कागज पे लिखूँ हर दिन नया तराना ।
कुछ मिलने पर मुस्कुराना वरना मायुस हो जाना ।

आज मालूम हुआ ।
के

बच्चे ऐसे ही तो होते हैं ।
परछाईयों के भी चेहरे होते हैं ।

नया दौर अब कैसी यह जिन्दगी ।
कौन करता है यहाँ बन्दगी ।

खौफ किसको है खुदा का, हैरान होकर बोलते हैं ।
इस दुनिया में भगवान भी होते हैं ।
नहीं मानते उस खुदा की
फिर क्यों यह दंगे होते हैं ।
फिर क्यों यह दंगे होते हैं।
परछाईयों के भी चेहरे होते हैं।

यह मेरी कविताओ की पहली किताब हैं। मैंने अपनी कविताओ के माध्यम से अपनी सोच को कागज पर ब्यान कर रहा हूँ। वक्त गुजरता गया चेहरा बदलता गया सोच बदलती गयी। नए लोग मिले, नए दोस्त बने पर कुछ लोग जिन्हें मैं आज भी याद करता हूँ और जिन्हें मैं आज भी याद हूँ।

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