ज़िकर होता है मेरा
जब ज़िकर होता है मेरा कहीं पर
खिल जाते है फूल मेरे दिल के शजर पर
मेरी यादें देती होगी कभी दस्तक उसको
तमाम उर्म, याँदे कुर्बान कर दी जिन पर
जब ज़िकर होता है मेरा कहीं पर ।
आज तन्हा बैठा हूँ किसी की मजार पर
लिख कहा हुँ उस के लिए कुछ
और वो सोच कर हंस रही होगी मेरे इस हाल पर
जब ज़िकर होता है मेरा कहीं पर ।
लोग कहते बहुत देखे तेरे जैसे यहाँ पर
वो लोग क्या समझे मेरी बातों को
जो प्यार को देखते या पढते है
फिल्मों या किताबों पर
जब ज़िकर होता है मेरा कहीं पर ।
परवाने क्यों मर जाते हैं शमां पर
क्यों कोई समझ ना पाया इस बात को
क्योंकि आखिर रोशन तो सब होना चाहते है इस जहान पर
जब ज़िकर होता है मेरा कहीं पर ।
आ जाते है जैसे सितारे आसमान पर
आज रात कुछ काली है तो क्या हुआ
आ जाएगी रोशनी इस छिपे हुए महताब पर
जब ज़िकर होता हैं मेरा कहीं पर ।
ये पैसे की दुनिया और पैसा ही यहाँ पर
वो हया के दिन होते थे कभी
हया भी आज रूसवा है यहाँ पर
जब ज़िकर होता
है मेरा कहीं पर ।
मत भूल उसकी नज़र है हम सब पर
मैने माँगा लेकिन अभी मिला नहीं
मगर देर है अंधेर नहीं उसके दर पर
जब ज़िकर होता है मेरा कहीं पर ।
Vishal Kaushal
यह मेरी कविताओ की पहली किताब हैं। मैंने अपनी कविताओ के माध्यम से अपनी सोच को कागज पर ब्यान कर रहा हूँ। वक्त गुजरता गया चेहरा बदलता गया सोच बदलती गयी। नए लोग मिले, नए दोस्त बने पर कुछ लोग जिन्हें मैं आज भी याद करता हूँ और जिन्हें मैं आज भी याद हूँ।
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